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भारत के प्तयेक राजय में औषिीय पौिों और िकृक्ों की कई प्जाततयां पाई जाती हैं बजनमें से क भु छ के बारे में तो ्लोगों को पता भी
नहलीं है। क भु छ िनसपततयों को वयािसातयक सतर पर उगाया जा रहा है ताकक उनहें िैकबलपक धचककतसा पदितत में प्योग ककया जा सके ।
तमम्लनाडभु उत्तर प्देश
तलमि में कीझा ने्िी के नाम से जानी जाने वािी िक्मी तरु भारत में पाया जाने वािा एक औषधीय
एक जड़ी बूिी है जजसे इसके औषधीय मू्य के लिए पौधा है जजसकी खोज परम पूजय श्ी श्ी रववशंकर
प्रयोग ककया जाता है। आयुववेद में पेि, गुदवे और जजगर प्रयोगशािा दवारा की गई। इसका प्रयोग मचछरों को
संबंधी समसयाओं के इिाज के लिए इसतेमाि ककया मारने और क ु छ रोगकारक बै्िीररया की समाजपत
जाता है। के लिए ककया जाता है।
महरायाणझनी सी., कक्ा दस, श्ी िेंकटेशिर मैदरिक उचचतर माधयममक अतभु्ल यादि, कक्ा नौ, नेिी धचलड्रन सक ू ्ल, विसाखापटनम
विदया्लय, तंजािभुर नागरमो् का मुसतक (नि क्रास) उत्तर प्रदेश में
के िातन्िी का प्रयोग तवचा के अ्सर, घाव, सूजन और खुजिी के बह ु तायत में पाई जाने वािी वनसपतत है। यह पेि में दद्म और ऐंठन के
उपचार के लिए ककया जाता है। यह जठरांत् संबंधी ववकार, दसत, कबज उपचार के लिए और पाचन तंत् को मजबूत करने के लिए उपयोगी है।
और पेधचश के इिाज के लिए ककया जाता है। ओशी अग्रिा्ल, कक्ा आठ, सभुददती ग्लोब्ल एके डमी, इटािा
ककरन, कक्ा सात, सी.एम.एस. सेिन िेलस , चेननैई
व्िरई एक अदभुत जड़ी बूिी है। व्िरई पाउडर के सा् दूध पीने से
पेि के कीड़े मर जाते हैं। उत्तराखंड
एम. पदमवप्या, कक्ा आठ, श्ी िेंकटेशिर मैदरिक हायर सेक ें डरली सक ू ्ल, तंजािभुर
उत्तराखंड में सबसे अधधक उगाया जाने वािा पौधा
है आँविा। इसमें जीवाणुरोधी गुण होते हैं। आंविे
कना्वटक के पत्ते, छाि और िि का प्रयोग कई बीमाररयों के
कना्मिक में िोकवप्रय ए्की पौधे की पवत्तयों का तवचा के किने के इिाज में ककया जाता है।
उपचार के लिए उपयोग ककया जाता है। यह पुरुषों, महहिाओं और भूमम साठे, कक्ा सात, रेयान इंटरनेशन्ल सक ू ्ल, सोहना रोड, धचत्ण: तन्ठा अग्रवाि,
बचचों में तवचा जिन के इिाज के लिए उपयोगी है। गभुड़गांि कषिा आठ, मॉडि अकादमी
सक ू ि, जममू
रूपा पटटया्ल, कक्ा आठ, आर.ए्ल.एस हाई सक ू ्ल, िारिाड़
हररया्णा
गोआ हररयाणा में औषधीय पौधों का एक महान इततहास है। राजय के
अदकी एक चमतकारी जड़ी बूिी है और वैहदक काि से प्रयोग की जा स्ानीय िोग कई बीमाररयों के इिाज के लिए प्राक ृ ततक उपचार करते
रही है। इसकी पवत्तयों का अक्म नेत् रोगों के उपचार में प्रयोग ककया हैं। प्राक ृ ततक उपचार के लिए जड़ी बूिी, झाडड़यों, पेड़, ि ू ि, और बेिों
जाता है। इसकी जड़ का अक्म पेि की समसयाओं के लिए उपयोगी का प्रयोग ककया जाता है।
होता है। ममशा सूरली, कक्ा सात, ददल्लली पब््लक सक ू ्ल, सेक. 45, गभुड़गांि
विदभु्ल और तानया, शारदा मंददर सक ू ्ल, प्णजी
राजसथान
के र्ल जनजातीय िोगों और ववलश्ि संसक ृ तत वािे समुदायों ने अपनी सवयं की
सांसक ृ ततक और धचककतसा प्रणालियों का ववकास ककया है। राजस्ान में
कोकम िि आयुववेहदक दवाएं तैयार करने में भीि, मीणा, गरलसया, कािबेलिया और कै ्ोडड़या सहदयों से अपनी ही
इसतेमाि ककया जाता है और घावों और कान औषधीय प्रणािी का प्रयोग कर रहे हैं।
में संक्रमण के लिए एक प्राक ृ ततक उपाय माना नेहा िाििानी, कक्ा दस, आ्लोक सीतनयर सेक ें डरली सक ू ्ल, उदयपभुर
जाता है। आयुववेद में कोकम का सत बवासीर,
पेधचश के इिाज, पाचन सुधारने और पषिाघात
के उपचार के लिए प्रयोग ककया जाता रहा है।
मछ्लली की कहानी
आददतयक कृ ष्ण मलहोरिा , कक्ा छः, शारदा मंददर सक ू ्ल, प्णजी
दक्षिणी भारत के हैदराबाद शहर में दमे के इिाज के लिए बा्नी
के रि परंपरागत रूप से ववलभनन औषधीय वनसपततयों और जड़ी बूहियों मछिी दवा णखिाई जाती है। यह दवा हर वष्म मृगलसरा कार्ी पर
का स्ोत रहा है। यहाँ कई प्रततज्ठत आयुववेहदक असपताि हैं, जैसे श्ी णखिाई जाती है। यह मछिी वािी दवा िगातार तीन साि खानी
धनवनतरर आयुववेद, कोटिाकि आय्म वैदयशािा, और क ृ ्णेंदु आयुववेद होती है ।
ररसॉट्मस आयुववेहदक उपचार उपिबध कराते हैं।
पारु्ल धचंतापल्लली, कक्ा सात, ददल्लली सक ू ्ल ऑफ एकसे्लेनस, बंजारा दहलस, हैदराबाद
के . श्ीतनधि, कक्ा आठ, पल्लिी मॉड्ल सक ू ्ल, मसकं दराबाद
पृ्ठभूलम धचत्ण : नववका राजपूत, कषिा दस, पाइन हॉि सक ू ि, देहरादून
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