Page 3 - Oct-Dec 2013
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अंक 10 क्रमांक 4
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विशि भर में जनजातीय ्लोगों और विमशषट संप्दायों ने अपनी अपनी संसक कृ ततयों, परंपराओं, िममों, िामम्वक प्थाओं, िज्वनाओं,
कक ं िदंततयों और ममथकों, ्लोककथाओं, औषिीय पौिों आदद का विकास ककया है। इन संसक कृ ततयों में असंखय िनय और उगाए गए
पौिों की बह भु त हली महतिपू्ण्व और अतनिाय्व भूममका है।
मममशंग धचककतसा नागा ्लोक धचककतसा
असम और अरुणाचि प्रदेश के लमलशंग समुदाय की अपनी नागािैंड को उसकी समृदध जैव
अदववतीय औषधीय प्रणािी है। लमलशंग ताजी दवाओं के रूप में ववववधता के लिए जाना जाता है। यह
कईं उपयोगी जड़ी बूहियों और पौधों
ववलभनन जड़ी बूहियों, को क ु चि कर उनसे तनकािे गए रस,
से समृदध है जजनका उपयोग औषधीय
और चूरन का प्रयोग करते हैं। ये जड़ी बूहियाँ स्ानीय रूप से
प्रयोजनों के लिए ककया जाता है। आम
उपिबध हैं।
तौर पर, जड़ी बूहियों का पारंपररक ज्ान
स्ानीय वैदयों तक ही सीलमत है। नागािैंड के पहाड़ी इिाकों में
बसी िो्ा-नागा जनजाततयों को स्ानीय रूप से उगाई जड़ी
बूहियों के प्रयोग से कई बीमाररयों के इिाज के लिए जाना
बमज़ ाे जनजाततयों की पारंपररक धचककतसा जाता है।
प््णा्लली नागािैंड में पाए जाने वािे िेकॉक पौधे को इसके कसैिे
सवाद और पाचक गुणों के लिए जाना जाता है। इसका प्रयोग
जमज़ ाे जनजाततयों की पारंपररक धचककतसा प्रणालियां गहन प्रेषिण ब्ोंकाइहिस, तवचा रोग, क ु ्ठ रोग और अस्मा के इिाज के लिए
और मानयताओं पर आधाररत हैं। लमजो जनजाततयों में रोगों के ककया जाता है।
उपचार के लिए औषधीय पौधों का उपयोग सहदयों पुरानी प्र्ा है। सभुंगजेमक्ला, कक्ा आठ, जॉन डग्लस सक ू ्ल, कोदहमा
रेपजी अओ नागा जनजातत दवारा उपयोग की जाने वािी परंपरागत
जड़ी बूिी है। यह राजय भर में सभी झूम खेतों और घरेिू बगीचों
में पाई जाती है। इसकी पवत्तयों और जड़ों का औषधीय महतव है।
्लेपचा और भूदटया धचककतसा प््णा्लली माओंग्लेम्ला, कक्ा आठ, जॉन डग्लस सक ू ्ल, कोदहमा
िेपचा क ु छ अद्मधहदवय प्राणणयों या
अलभभावक आतमाओं के अजसततव
में ववशवास करते हैं जजनका एक रहसयमय मेघा्लय
बह ु त बड़े पेड़ या पववत् पेड़ों के मेघािय की सभी जनजाततयां उपचार के पारंपररक तरीकों का
रूप में सममान ककया जाता है। उपयोग करती हैं। इन दवाओं को स्ानीय िोगों ने खुिकर
ऐसी मानयता है कक यहद कोई सवीकार ककया है।
उनका अपमान करता है तो वह
कसांडरा ओदामी ररंझा, कक्ा, नौ, बी.के . बाजोररया सक ू ्ल, मश्लांग
वयज्त गंभीर बीमारी और मृतयु से पीडड़त हो सकता है। िेपचा
मेघािय की खासी जनजातत में एक पुरानी मानयता है कक बचचाें
संसक ृ तत में तोतोिा वृषि का बह ु त सममान है। भूहिया संसक ृ तत
और नवजात लशशुओं को एक ववशेष रोगाणु संक्रलमत करता है।
में प्रलशक्षित ववशेषज् होते हैं जजनहें पऊ के रूप में जाना जाता है
इसे खासी भाषा में तनयांगसोफे त कहा जाता है, तनयांग अ्ा्मत
और वे ि ू िी का अभयास करते हैं जो एक ऐसा अनु्ठान है जजसमें
रोगाणु और सोिे त अ्ा्मत नालभ। खासी िोग शरीर से कीिाणुओं
वे एक प्रकार की भाव-समाधध में जाकर आतमाओं के सा् संवाद
को खतम करने के लिए दवाई तनयांगसोिे त नामक जड़ी बूहियों
करते हैं और रोग के मूि कारण को खोजते हैं।
का काढ़ा बनाते हैं।
मण्णपभुर का चमतकार
मसबककम में तंरि और मंरि मणणपुरी में िोतनंगखोक के रूप में पहचाने
जाने वािे धगरधगि पौधे को उसके औषधीय
लसज्कम में धम्म और धचककतसा के तांत्त्क रूप को गुरु पदमसंभव
गुणों के लिए जाना जाता है। इस पौधे के
दवारा आरंभ ककया गया जजनहें आमतौर पर गुरू ररमपोचे के रूप में
पत्ते का रस पेधचश के इिाज के लिए प्रयोग ककया जाता है।
जाना जाता है। धचककतसा के इस तांत्त्क रूप में, भगवान बुदध का
उगयेन मेनिा रूप में आहवान ककया जाता है। िी. एम. सभुभाश्ी, कक्ा छः, रेिूर पदमनाभ चेटटली मैदरिक उचचतर माधयममक सक ू ्ल,
चेननई
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